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उपसंहार
जैन - शेताम्बर शाखाके तीनों सम्प्रदायों के आचार्यों से बार्तालाप: शास्त्र - संशोधन की योजना ।
अन्य प्राणियों की तरह मनुष्य भी अपने प्रारम्भिक कालमें समाज विहीन अवस्था में रहा था । प्रकृति द्वारा मानव शरीर में भाषा के विकास होने की सुविधा प्राप्त थी इसलिये एक दूसरे के अनुभव और विचारों के आदानप्रदान से मनुष्य के ज्ञान की वृद्धि में बहुत अधिक सहायता मिली। जीवन-संघर्ष में होने वाले कष्टों को मिटाने का उसने बारबार उपाय सोचा और विचार किया कि एक दूसरे की सहायता और सहयोग से काम लिया जाय तो इन कष्टों को मिटाने में बहुत बड़ी सहायता मिलेगी। उसने इस दिशा में प्रयत्न किया जिसके परिणाम स्वरूप समाज की रचना हुई । एक के कष्ट में दूसरे ने हाथ बटाया और इस प्रकार मनुष्यों ने अपने कष्ट को घटाने या मिटाने में बहुत हद तक सफलता प्राप्त की । समाज के बनने की यही बुनियाद है । समाज - जिसकी बुनियाद ही एक दूसरे के सहयोग और सहायता के उद्देश्य की पूर्ती के लिये हुई हो, उसमें ऐसे विचारोंका प्रसार होना कि एक दूसरे की सेवा और सहायता करना एकान्त पाप है, अभाव और विपत्ति में कोई किसी की निस्वार्थ भाव
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