________________
जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
१६३
लिये समय दिलाने की प्रार्थना की तो आप फरमाने लगे कि अभीतक लेख पूरे देखे नहीं गये हैं। देख लेने के पश्चात् बातचीत करना ठीक रहेगा। कार्तिक बदि २ को मैं बम्बई पहुंचा। कार्तिक बदि ६ तारीख ७ अक्टूबर सन् १६४४ के दिन वहांपर जैनाचार्य श्री सागरानन्द सूरि जी महाराज-जो संस्कृत प्राकृत भाषा के प्रखर विद्वान और जन शास्त्रों के पूरे ज्ञाता बताये जाते हैं के दर्शन किये । बन्दना नमस्कार कर सुखसाता पूछने के पश्चात् उनसे भी मैंने अज की कि महाराज, बर्तमान जैनशास्त्रों में अनेक बातें ऐसी हैं जो प्रत्यक्ष में असत्य प्रमाणित हो रही है वे हटाई जानी चाहिये आदि। ऐसा परिवर्तन करने में आप जैसे विद्वान आचार्यों की आवश्यकता है। सुन कर आचार्य महाराज फरमाने लगे कि प्रत्यक्ष में असत्य प्रमाणित होने वाली बातें जैन शास्त्रों में कोई नहीं है। सर्वज्ञों के बचन कभी असत्य हो सकते हैं ? कभी नहीं। मैंने कहा, महाराज जैन शास्त्रों में अनेक स्थानों में लिखा है कि जम्बूद्वीप में बड़े से बड़ा दिन होता है तो १८ मूहूत से बड़ा नहीं होता परन्तु लन्दन शहर में २२।२३ मुहूर्त तक का बड़ा दिन होता है, और वहां से उत्तर की तरफ जावें तो और भी अधिक बड़ा होता है। यहां तक कि उत्तरध्रुव पर लगातार ६ महीने तक सूर्य दिखाई देता है। महाराज साहब फरमाने लगे कि यह तुम्हारे समझने की गलती है। शास्त्रों में कहा है कि बड़े से बड़ा दिन होता है तो जम्बूद्वीप भरमें १८ मुहूर्त से बड़ा कहीं नहीं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org