________________
जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! १०६ स्वीकार करते हैं कि सवेज्ञों की बात प्रत्यक्ष में असत्य हो सकती हैं। यदि नहीं तो ऐसी बातों के कहने वालों को आप सर्वज्ञ समझ ही क्यों ? सर्वज्ञ सत्य के कहनेबाले ही होंगे, और उनके साथ मजाक करने की मजाल ही किस की है ?" फिर वे कहने लगे “मैंने ऐसा सोच समझ कर ही किया है कारण, यदि मैं दूसरी शैली से लिखता तो इन लेखोंको रुचि से कोई पढ़ता तक नहीं। एक तो शास्त्रों का विषय ही शुष्क ठहरा और दूसरे उपदेशकों ने अपनी 'सन्तवाणी' द्वारा सैकड़ों वर्षों के लगातार प्रयत्न से लोगों को शास्त्रों के अन्धभक्त बना दिये हैं। इसलिये बिना चुभनेवाले शब्दों से मुझे असर होता नहीं दीखा।" सिंघीजी की बात कुछ मेरे भी ऊंची । खैर, आप मुझ से परिचित तो हो ही गये हैं थली प्रान्त की हलचलों के बाबत आप को कभी कुछ पूछना हो तो मुझ से पूछ लिया करें। आप संकोच न करें। मेरा हृदय बिशाल है, मै साफ कहूंगा। समय समय पर मैं स्वयं भी आप को यहाँ की गति-विधि से वाकिफ करता रहूंगा।
आपका, 'थली-बासी'
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org