________________
जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
११७
को शिक्षण देने की विधि वगैरह को देख कर मुझे तो यह अनुमान होता हैं कि चौदह पूर्व की यह कल्पना ही निराधार होगी। सुधर्मा स्वामी से जम्बूस्वामी को और जम्बूस्वामी से प्रभव स्वामी को इसी तरह परम्परा से पूर्वो के शिक्षण का विधान है। चौदह के पश्चात् १० पूर्वघर और दस के पश्चात् ४ पूर्वधर और चार के पश्चात एक जैसे जैसे हास हुआ, वैसे वैसे कम होते हुए सब पूर्व विच्छेद गये बतलाते हैं। यह पूर्व तो जब विच्छेद गये तब गये होंगे मगर ऐसी कल्पना को सुन कर जिनके हृदय में सवाल तक पैदा नहीं हुआ, उनकी बुद्धि तो अवश्य विच्छेद गई प्रतीत होती है; वरना 'तहत वाणी' के साथ ऐसी कल्पना को भी हजम कर गये-ऐसा नहीं दीख पड़ता।
-----*
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org