________________
जैन शास्त्रों की असंगत बातें!
१३७२६१६२८८३६३३५२७३२८ होती है। कोई मनुष्य एक मिनिट में १००० अक्षर की तेज रफ्तार से भी यदि उच्चारण करे तो चौदह पूर्वो के केवल अक्षरों को उच्चारण मात्र करने में २६४७७६६५५३२ वर्ष और करीब ४ महीने लगेंगे। चौदह पूर्व के धारक सुधर्मा स्वामी बताये जाते हैं। उनके जीवन-चरित्र में लिखा है कि वे ५० वर्ष गृहस्थ रहे और फिर भगवान महावीर के पास सयंम जीवन (साधुपन) व्यतीत करते हुए आखिर आठ वर्ष केवली अवस्था में रह कर पूरे १०० वर्ष की आयु समाप्त करके वीराब्द सं० २० में मुक्ति पधारे । यह तो मानी हुई बात है कि गृहस्थ अवस्था में उन्हें चौदह पूर्व का भान तक नहीं था, बाकी रहे ५० वर्ष जिनमें उन्होंने चौदह पूर्व की इतनी बड़ी श्लोक-संख्या का ज्ञान स्वयं प्राप्त किया और अपने पटधर शिष्य जम्बू स्वामी को भी करा दिया। जिन चौदह पूर्षों के अक्षरों का केवल उच्चारण-सो भी रात दिन २४ घन्टे लगातार प्रति मिनिट १००० अक्षरों की तेज रफ्तार के हिसाब से-किया जाय तो करीब २६३ अरब वर्ष लगे, उनका सम्पूर्ण ज्ञान कैसे तो उन्होंने ५० वर्ष में खुद ने किया और कैसे जम्बूस्वामी को करा दिया। यह बड़े आश्चर्य की बात है। क्या यह कोई औषधि का मिक्सचर था कि गिलास भर कर निगल लिया गया। कल्पना की भी कोई हद होती है !
पूर्वो के स्याही-खर्च के हाथियोंकी संख्या और पदों के श्लोक एवं अक्षरों की संख्या तथा सुधर्मा स्वामी से जम्बूस्वामी आदि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
___www.jainelibrary.org