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जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! सूर्य से ३२०००० माइल अपर की तरफ। और इनका गोलाकार विमान है जिसकी लम्बाई ५६ योजन यानी ३६७२६ माइल और इतनी ही चौड़ाई तथा मोटाई ३६ यानी १८३६३ माइल की है। इस विमान का नाम चन्द्रावतंसक विमान है
और इसको १६००० देवता उठाये आकाश में भूमण कर रहे हैं। इन १६००० देवों का रूप इस प्रकार बताया है कि ४००० देव पूर्व दिशा में सिंह का रूप किये हुए, ४००० देव दक्षिण दिशा में हाथी का रूप किये हुए, ४००० देव पश्चिम दिशा में वृषभ का रूप किये हुए, और ४००० देव उत्तर दिशा में अश्व का रूप किये हुए हैं। जीवाभिगम सूत्र में इन हाथी घोड़े, सिंह और बैल वाले रूपों का विस्तार पूर्वक जो रोचक वर्णन आया है, वह देखते ही बनता है। चन्द्रदेव के चार अग्रम हिषियां (पटरानियां ) हैं और प्रत्येक पटरानी के चार चार हजार देवियों का परिवार है। इस प्रकार चन्द्रदेव के भी १६००४ देवियाँ हुई। चन्द्रदेव की चारों पटरानियों के नाम चन्द्रप्रभा, सुदर्शना (कहीं कहीं ज्योतिषप्रभा), अचिमाली
और प्रभंकरा है। इन १६००४ देवियों के साथ नाना प्रकार के भोगोपभोग भोगते हुए चन्द्रदेव आकाश में विचरण कर रहे हैं। सूर्य और चन्द्रदेव के भोगोपभोग के सम्बन्ध में जीवाभिगम सूत्र में भगवान् से श्रीगौतम स्वामी ने एक प्रश्न पूछा है जो कुतूहल-वर्द्धक है। श्रीगौतम स्वामी पूछते हैं कि 'हे भगवान्' सूर्यदेव और चन्द्रदेव अपने सूर्य्यावतंसक और
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