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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
१०--पृथ्वी को समतल ( Flat' बताना, जब कि पृथ्वी नारंगी की तरह एक गोल पिण्ड के सदृश्य है। ११-पृथ्वी को असंख्यात योजन लम्बी-चौड़ी बताना, जब कि पृथ्वी केवल २४८५६ मील की परिधि में स्थित है। १२- इस तृथ्वी पर कल्पनातीत बड़े बड़े पर्वत, समुद्र, नद, नगर आदि बताना, जो आप गत लेखों में देख चुके हैं, जब कि हमारे सामने जो है, वह मौजूद है। १३-सूर्य की गति १ मिनट में ४४२०८४४ मील की बताना, जब कि हमारे यहां के हिसाब से १७६ मील की साबित होती है। १४-सूर्य का उदय होते समय १८६०५३३७७ मील की दूरी से इष्टिगोचर होते बताना, जब कि १००-२०० मील की दूरी से भी दिखाई नहीं पड़ता है। १५-सूर्य पिण्ड का६ योजन, यानी ३१४७३३ मील का व्यास बतलाना, जब कि उसका व्यास ८६६००० मील का है। १६-सूर्य को सममूमि से ३२००००० मील की ऊंचाई पर बताना, जब कि सूर्य हम से ६२६६५००० मील की दूरी पर है। १७-चन्द्रमा को ३५२०००० मील की ऊँचाई पर बतलाना, जब कि चन्द्रमा केवल २२१६१० मील की दूरी पर ही है। १८-चन्द्रमा के विमान को ५६ योजन यानी ३६७२६ मील के व्यास का, सूर्य से भी बड़ा बताना, जब कि चन्द्रमा सूर्य से भत्यन्त छोटा है, जो आप पूर्व लेखों में देख ही चुके हैं। सर्वज्ञों
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