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१०४ जैन शास्त्रों को असंगत बातें ! चौरासी लाख गुना अधिक बताते हुये उनके नाम करणकीर चना और ऐसी असम्भव कल्पना का करना। त्रुटितांग, त्रुटितअडडाँग, अडड-अववांग, अववहुहुतांग, हुहुत आदि ऐसे निरर्थक और ऊटपटांग शब्द हैं जिनका कोई अर्थ भी नहीं निकलता और सुनने में भी खिलवाड़-सा मालूम देता है। चौरासी लाख की संख्या को बराबर २८ दफा गुना कर के ऊटपटांग नामों के साथ अङ्कों की संख्या १६४ तक बढ़ाई गई है। हम जैनी लोग बड़े गर्व के साथ कहा करते हैं कि जैन शास्त्रों की संख्या की नामावली का क्या कहना ? अन्य सबों की संख्या की नामावली के नाम तो १६ अङ्कों तक ही समाप्त हैं मगर हमारी संख्या के नाम १६४ अङ्क तक हैं। जैन श्वेताम्बर फिरके की भिन्न भिन्न सम्प्रदायों के तीन-चार विद्वान सन्तमुनिराजों से मैंने पूछा कि "महाराज, इस त्रुटितांग से लगाकर शीर्ष प्रहेलित तक की संख्या के सब नामों का जैन शास्त्रों में क्या आपने कहीं व्यवहार ( use ) होता हुआ देखा है ?" तो सब ने यही कहा कि हमने तो कहीं नहीं देखा। त्रुटितांग से शीर्षप्रहेलित तक की संख्या का जब कहीं व्यवहार ही नहीं हुआ है तो १६४ अङ्कों का गर्व करने और बड़ाई बघारने का मूल्य ही क्या है ? हम इस बार बार २८ बार गुना होनेवाली चौरासी लाख की संख्या को ककखां-कखख, गगघां-गगघ, चचछा-चचछ की तरह ऊटपटांग शब्दों से सैकड़ों हजारों नाम रचकर संख्या बना दें तो चौरासी लाख से बार बार गुना होकर संख्या के
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