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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
निकाल लो, वही परिधि होगी । यह गुर किस गुरु से प्राप्त किया, यह तो सर्वज्ञ ही जानें, बाकी practically परीक्षा करने पर यह गुर सर्वथा असत्य प्रमाणित होता है । जिस गणित का गुर ही झूठा हो, वहां सच्चे उत्तर का मिलना असम्भव से भी असम्भव है । इस प्रकार गणित के अधूरे ज्ञान पर सर्वज्ञता की मोहर लगाना सर्वज्ञता के शब्द का कितना बड़ा उपहास है, पाठक स्वयम् बिचार लें । जैन शास्त्रों की गणित में केवल परिधियां ही असत्य हैं, सो बात नहीं है । इनके तो क्षेत्रफल बताने में भी ऐसा ही हुआ है । एक लाख योजन के लम्बे-चौड़े गोलाकार जम्बूद्वीप का क्षेत्रफल बताते हुए सर्वज्ञों ने कहा है कि जम्बूद्वीप के एक एक योजन के समचोरस खण्ड किये जायें तो ७६०५६६४१५० खण्ड होकर ३५१५ धनुष्य ६० अंगुल क्षेत्र बाकी रह जायगा । यह कथन सर्वथा असत्य और गलत है । वर्तमान गणित के हिसाब से एक लाख योजन लम्बे-चौड़े व्यासवाले गोलाकार क्षेत्र के यदि एक एक योजन के समचौरस खण्ड किये जायें तो ७८५३६८१६२५ खण्ड होते हैं और यही इसका क्षेत्रफल है । यदि हम जन शास्त्रों के बताये हुए धनुष्यों और अंगुलों की सूक्ष्मता को किनारे रख दें तो भी ७६०५६६४१५० और ७८५३६८१६२५ के दरमियान ५१७५२५२५ योजन यानी २०६८५०१००००० माइल का बहुत बड़ा अन्तर पड़ता है जो सर्वज्ञता को असत्य साबित करने के लिये काफी है । पाठक बृन्द, किसी स्थान के क्षेत्रफल निकालने में जहां २३ खरब माइल से भी
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