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जेन शास्त्रों की असंगत बातें !
करना और जिम्मेवारी से रिहा पाना है। खैर, खगोलभूगोल के विषय पर बिवेचन करना हम छोड़ ही दें तो भी तो अनेक बातें ऐसी हैं जो प्रत्यक्ष में असत्य साबित हो रही हैं । परिधियों के असत्य होने को आप प्रस्तुत लेख में अच्छी तरह देख ही चुके हैं और इसी तरह अन्य बातों को भविष्य में क्रमशः देखते रहेंगे । सर्वज्ञों के वचनों में जहाँ रश्च मात्र भी असत्य होने की गुंजाइश नहीं, अक्षर अक्षर पर सत्यता की मोहर लगाई हुई है, वहां अगर इस प्रकार प्रत्यक्ष में असत्य साबित होने वाले प्रसंग सामने आ रहें हैं तो ऐसे aari को बिना बिचारे आँख मींच कर सत्य मानने वाला तो भलेई मान ले पर विचार वाले का तो यह कर्तव्य हो जाता है कि जो विधि और निषेध मनुष्य जीवन के लिये परम शांति के हमारे शास्त्र बतला रहे हैं, वह वास्तव में हित के हैं या नहीं -- इसका विचार कर अमल में लावें । ऐसा नहीं कि शास्त्रों में कह दिया कि हर हालत में भूख-प्यास से खुद के प्राण देने धर्म है तो धर्म ही मान बैठे और भूख प्यास से मरते को बचाने की सहायता करने में अधर्म है तो अधर्म ही मान बैठे ।
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