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'तरुण जैन' जनवरी सन् १६४४ ई० इस लेख माला का उद्देश्य
'तरुण जैन' के गत मई से दिसम्बर, ४१ तक आठ महीनों के अंकों में लगातार 'शास्त्रों की बातें !" शीर्षक मेरे लेख निकल चुके हैं जिनमें जैन शास्त्रों में बताई हुई खगोल-भूगोल सम्बन्धी कुछ बातों पर प्रकाश डालते हुए मैंने प्रश्नों के रूप में सत्यासत्य जानने का प्रयास किया है। इन लेखों के विषय में 'तरुण जैन' के सम्पादक महोदय के पास कुछ सज्जनों के पत्र आए जिनमें यह शिकायत थी कि लेखक जैन शास्त्रों पर आक्रमण कर रहा है। साथ ही यह अनुरोध भी था कि 'तरुण जैन' में ऐसे लेखों को स्थान नहीं मिलना चाहिये। गत सितम्बर के अङ्क की सम्पादकीय टिप्पणी में मेरे लेखों के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए सम्पादक महोदयों ने ऐसे सज्जनों को बहुत सुन्दर और यथार्थ उतर दे दिया है। मुझे इस विषय में कहने की कुछ आवश्यकता नहीं रही। गत लेखों में मैंने यह कहा है कि जैन शास्त्रों में भी अन्य शास्त्रों की तरह अनेक बात ऐसी लिखी हुई नजर आ रही हैं जिन्हें हम असत्य, अस्वाभाविक
और असम्भव अनुभव कर रहे हैं। गत लेखों में असत्य प्रतीत होने वाली बातों की एक सूची मैंने पिछले दिसम्बर के अंक में दे दी है। जैन शास्त्रों के ज्ञाता और विद्वान लोगों से मेरा विनम्र अनुरोध है कि उस सूची की प्रत्येक बात का वे सन्तोषजनक समाधान करें।
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