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जैन शास्त्रों को असंगत बातें!
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शास्त्रों की इस देखा-भाली में कई स्थल ऐसे देखने में आये जिनसे यह स्पष्ट प्रतीत हो रहा है कि प्रत्येक मजहब वालों ने एक दूसरे के प्रति साधारण जनता में द्वेष फैलाने का निकृष्ट प्रयास करने में भी संकोच नहीं किया है । सनातन धर्म के श्री भागवत महापुराण के पञ्चम स्कन्ध में जैनधर्म के प्रति अनेक स्थलों में जहर उगला गया है और जैन शास्त्रों के कई सूत्र-ग्रन्थों में अनेक स्थलों में सनातन धर्म के प्रति जहर उगला गया है। साथ ही अपने अपने धर्म-ग्रन्थों के अक्षर अक्षर की सत्यता की दुहाई देने में किसी ने भी कमी नहीं रखी है। एक कहता है कि हमारे धर्म-ग्रंथ तो अपौरुषेय हैं यानी मनुष्य के रचे हुए ही नहीं है, खास ईश्वर के ही वचन हैं, तो दूसरा कहता है हमारे शास्त्रों में भगवान सर्वज्ञ सर्वदर्शी खुद के श्रीमुख से निकले हुए वचन हैं। बिचारी भोली जनता साहित्यिक शब्दाडम्बर की सुललित मादक धारा के बहाव में पड़ कर इस अक्षर अक्षर सत्यता के भँवर में फंस जाती है और अपने हिताहित को भूल कर एक दूसरे ( मजहब वालों) से द्वेष करने लगती है जिसका बुरा परिणाम हम सामाजिक क्षेत्र में पग पग पर देख रहे हैं। जैन शास्त्र नन्दीसूत्र में सत्य सत्य शास्त्रों की नामावली सुन लेने के पश्चात् श्री गौतम स्वामी ने भगवान से प्रश्न किया कि हे भगवान, मिथ्या शास्त्र कौन कौन से हैं तो श्री भगवान ने फरमाया कि हे गौतम, मिथ्या दृष्टि, अज्ञानी, स्वछन्द बुद्धि वाले मिथ्या
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