________________
जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
ह
IT बताना, जबकि एक ही वर्ष में ५ सूर्यग्रहण तक हो सकते हैं और एक महीने के अन्तर से भी हुए हैं । ४. -सूर्य ग्रहण का उत्कृष्ट अन्तर - काल ४८ वर्ष बताना, जब कि १८ वर्ष २२८ दिन ६ घन्टे पश्चात् ग्रहण पहिले के क्रम से होने लगते हैं ।
५ - कम्वत्सरों के हिसाब से ६५ वर्ष में ३ अधिक मास का अन्तर पड़ता हैं, जिससे कई शताब्दिहाँ गुजरने से ऋतुओं का सब क्रम बिगड़ जाता है ।
६- बुध और शुक्र में चन्द्रमा की तरह दिखाई देने वाली कलाओं का न बताना, जब कि वे साफ दिखाई दे रही हैं । यदि सर्वज्ञों के पास दूरदर्शक यंत्र होते तो वे भी अवश्य देख पाते ।
७ रवि-बुध और रवि-शुक्र के होने वाले संक्रमणों का न बताना, जब कि यह भी साफ देखे जा रहे हैं। दूरदर्शक यन्त्र के अभाव ने सब गड़बड़ पैदा कर दी अन्यथा दूरदर्शक यन्त्र होते तो सर्वज्ञता की दिव्यदृष्टि उज्ज्वल हो जाती ।
८- शनि के वलय ( छल्ले ) नहीं बताना, जब कि वे साफ दिखाई दे रहे हैं । यह भी दूरदर्शक यन्त्र के अभाव का प्रताप है ।
६ -- पृथ्वी पर एक ही समय में कहीं पर सख्त गर्मी और कहीं पर सख्त सर्दी का होना, जब कि सर्वज्ञों ने ऋतुओं के अनुसार • सर्व भूमि पर एक सा बर्ताव बताया है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org