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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
बात ऐसी मिलंगी, जो मेरे बताये हुए असत्य, असम्भव और अस्वाभाविक की कोटि में प्रयुक्त दृष्टिगोचर होंगी। प्रस्तुत लेख में भी आपने नोट किया होगा कि बुध और शुक्र में चंद्रमा की तरह होने वाली कलाएं, तथा रवि-बुध और रवि-शुक्र के होने वाले संक्रमण और शनि के चौगिर्द अलग दिखाई देने वाले वलय ( छल्ले ) इन सर्वज्ञों की दिव्यद्दष्टि से ओझल रह गये । सर्वज्ञों ने तो अपनी दिव्यद्दष्टि में सब ग्रहों को हर तरह से एक समान देखा। इसीलिये तो वे समदृष्टि कहलाते हैं ! सच है, गुड़ और खल के मूल्य में अंतर न देखना भी तो एक प्रकार का समदृष्टिपन है। इन लेखों में जो विवेचन किया गया है, उस पर विचार करने से बहुत सी बात ऐसी हैं, जिनका जैनशास्त्रों के वर्णन से सामंजस्य नहीं होता। उनमें से कुछ की यहां फेहरिस्त दे देना मुनासिब होगा जिससे वे पाठकों की स्मृति में ताजा हो जाय। १-जिस पृथ्वी पर हम आबाद हैं, उस पर प्रकाश देने वाले दो सूर्य बतलाना, जब कि एक ही सूर्य का होना प्रमाणित होता है। २–पृथ्वी पर १८ मूहूर्त से बड़े दिन और रात का न होना बतलाना, जब कि २२।२३ मूहूर्त तक के रात-दिन तो जहाँ हम लोग रहते हैं, वहाँ हो रहे हैं, और तीन तीन छः छः महीनों के अन्यत्र होते देखे जा रहे हैं। . ३-सूर्य-ग्रहण का जघन्य अन्तर-काल ६ महीने से कम का न
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