________________
जैन शास्त्रों की भसंगत बातें !
६६
नहीं किया जा सकता । पृथ्वी की अक्ष-रेखा भ्रमण पथ से तिरछी स्थित है और ६६३ अंश (डिगरी) का कोण बनाती है । पृथ्वी की गतियों और इस तिरछेपन से ऋतुओं का परिवर्तन होता है। गर्मी और सर्दी के लिहाज से पृथ्वी को भिन्न २ पांच भागों में विभक्त किया गया हैं। जिनको पाँच कटिबन्ध (Zones) कहते हैं-जैसे उत्तरी शीत कटिबन्ध, उत्तरी शीतोष्ण कटिबन्ध, उष्ण कटिबन्ध, दक्षिणी शीतोष्ण कटिबन्ध, दक्षिणी शीत कटिबन्ध । पृथ्वी पर एक ही समय में कहींपर कड़ाके की गर्मी और कहीं पर कड़ाके की सर्दी, कहीं पर दिन बहुत बड़े और कहीं पर छोटे, कहीं पर लगातार महीनों बड़े दिन और कहीं पर लगातार महीनों बड़ी रातें - इस प्रकार होने का कारण केवल पृथ्वी का नारंगी की तरह गोल होना, अपने अक्ष पर ६६३ डिगरी से तिरछा होना और कई तरह की गतियों से गमन करना है । दिसम्बर के दिनों में भूमध्य रेखा के उत्तरी भाग में कड़ी सर्दी पड़ती है तो दक्षिणी अमेरिका में कड़ी गर्मी; और भारत में सदीं पड़ती है तो आस्ट्रेलिया में गर्मी । सूर्य के उत्तरायण होने पर पृथ्वी का उत्तरी भाग जब सूर्य के सामने रहता है तब उत्तरी ध्रुव में छः महीने की रात होती है। सर्दी के दिनों में भारत में रातें १३३ घन्टे की और दिन १०३ घन्टे का होता है तब इङ्गलैंड में रात १८ घन्टे की और दिन ६ घन्टे का होता है । पृथ्वी की गति का प्रभाव चंद्रमा के प्रकाश पर भी पड़ता है। सर्दी के दिनों में गर्मी की ऋतु की अपेक्षा चन्द्रमा
1
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org