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जैन शास्त्रों को असंगत बातें ! गोल गुब्बारे की भांति फूले हुए पिण्ड दीख पड़ते हैं, जो घने बादलों के हैं। बृहस्पति के दोनों ध्रु बों की तरफ लम्बे चौड़े छायायुक्त मैदान पड़े हैं, जिनका रंग गहरा आसमानी दीख पड़ता है। बृहस्पति के पृष्ठ पर सन् १८७८ में एक विशाल रक्तवर्ण बिन्दु देखा गया जिसका क्षेत्रफल करीब १० कोटि मील का प्रतीत हुआ; फिर सन् १८८३ में वह बिन्दु लुप्त हो गया, मगर कुछ वर्षों बाद फिर दिखाई पड़ने लगा, और अब भी दिख पड़ता है। ज्योतिषियों का अनुमान है कि यह बिन्दु बृहस्पति का ही शुद्ध पृष्ठ है, जो कभी कभी घने बादलों से ढक जाता है। बृहस्पति पर बादल बहुत घने हैं, जिससे उसका पृष्ठ दिखाई पड़ने में बड़ी बाधा रहती है। बृहस्पति के ६ उपग्रह हैं, जिनका भिन्न भिन्न और विस्तृत वर्णन इस छोटे लेख में सम्भव नहीं है। बृहस्पति का पृष्ठ अभी तक वाष्पीय और अत्यन्त गर्म है, जिसको हमारी पृथ्वी की तरह जीवों की आबादी के योग्य बनने में करोड़ों वर्ष लगेंगे; वहां पर जीवधारियों का होना सम्भव नहीं है। बृहस्पति के कुछ उपग्रह उल्टी दिशा में भ्रमण करते हैं। बृहस्पति पर गुरुत्वाकर्षण पृथ्वीसे दुगुना है। जो वस्तु पृथ्वी पर डेढ़ मन की होगी, वह बृहस्पति पर तीन तन की हो जायगी। मगर घनत्व पृथ्वी की अपेक्षा बहुत कम है। पृथ्वी का घनत्व पानी की अपेक्षा ५३ गुणा भारी है मगर बृहरपति का ११ गुणा ही भारी है।
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