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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
चन्द्रमा आकर सूर्य को ढ़कता है, वे ही सूर्य्य ग्रहण देख सकते हैं। उनके सिवाय और देश वालों को पूरा सूर्य्य दिखाई देता है। सूर्य ग्रहण के समय दूरदर्शक यंत्र से देखने से चन्द्रमा सूर्य्य बिम्ब पर से खिसकता हुआ स्पष्ट दिखाई पड़ता है। सूर्य्य ग्रहण में बिम्ब के पश्चिम दिशा से स्पर्श और पूर्व दिशा से मोक्ष होता है । सूर्य ग्रहण सर्वदा अमावश्या और चन्द्र ग्रहण सर्वदा पूर्णिमा को होता है । चन्द्रमा पृथ्वी के चारों तरफ घूमता है और पृथ्वी सूर्य के चारों तरफ घूमती है । ऐसी दशा में प्रति मास ग्रहण होना चाहिये मगर चन्द्रमा के आकाश पथ का धरातल पृथ्वी के आकाश पथ के धरातल से भिन्न है और वह पृथ्वी के धरातल से सवा पांच डिगरी का कोण ( Angle) बनाता है । इसलिये प्रति मास ग्रहण नहीं हो पाता । ग्रहण तब ही होता है जब चन्द्रमा पृथ्वी के आकाश पथ के धरातल में आ जाता है जहां इन दोनों के आकाश पथ एक दूसरे से मिलते हैं । चन्द्रमा के पिन्ड पर जो धब्बे Spots दिखाई देते हैं, वे पहाड़ हैं, जिनमें अधिकांश ज्वालामुखी पहाड़ हैं परन्तु अब इन ज्वालामुखी पहाड़ों में अग्नि नहीं निकलती; केवल आकार मात्र रह गये हैं । इन पहाड़ों के बीच में तराईयां और सैकड़ों कोस लम्बे मैदान पड़े हैं। इनके अतिरिक्त कहीं कहीं सैकड़ों कोस लम्बी और तीन चार सौ गज गहरी तथा कोस से भी अधिक चौड़ी दरारें दिखाई देती हैं । चन्द्रमा पर जल और वायु दोनों का अभाव सा है, इसीलिये वहां पर हमारी पृथ्वी की भांति
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