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'तरुण जैन ' नवम्बर सन् १९४१ ई०
खगोल वर्णन : अन्य ग्रह
गत लेखों में आपने देखा ही है कि जैन शास्त्रों में कही हुई एक आध नहीं बल्कि अनेक बातें प्रत्यक्ष और वर्तमान विज्ञान के अन्वेषणों से बताये हुए वर्णन के सामने असत्य प्रमाणित हो रही हैं। पिछले लेखों में मैने कहा है कि जैन शास्त्रों में लिखी बहुत सी बातें असत्य असम्भव और अस्वाभाविक प्रतीत होती हैं । अभी तक मैंने केवल थोड़े से उन्हीं प्रसंगों पर लिखने का प्रयास किया है जो प्रत्यक्ष में असत्य प्रमाणित हो रहे हैं। यदि देखा जाय तो खगोल-भूगोल के विषय की जैन शास्त्रों की सारी कल्पनाएँ सर्वथा कल्पित मालूम होती हैं । वास्तव में उस जमाने में न तो यंत्रों का आविष्कार ही हुआ था और न विज्ञान के नाना तरह के नियमों और गणित का विकास हुआ था । ऐसी दशा में कल्पना के सिवाय और चारा ही क्या था ; मगर सर्वज्ञता के दावे में ऐसी निराधार कल्पनाओं का होना शोभा की बात नहीं । पिछले लेखों में यह दिखाया जा चुका है कि जैन शास्त्रों में सूर्य और चंद्रमा को ज्योतिषी देवों के इन्द्र मान कर प्रत्येक इन्द्र के २८ नक्षत्र, ८८ ग्रह और ६६६७५ क्रोडाकोड़ तारों का परिवार बताया है । इन २८ नक्षत्रों का सूर्य और चंद्रमा के साथ योग, गति, समय कुलोपकुल आदि नाना तरह
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