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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
फरमाते हैं जितने सूर्य हैं उतने ही चन्द्रमा हैं, चन्द्रमा से नक्षत्र संख्यात गुण अधिक, नक्षत्रों से ग्रह संख्यात गुण अधिक और ग्रहों से तारे संख्यात गुण अधिक हैं । इस प्रकार के अनेक प्रश्न हैं। जैन शास्त्रों में कुछ ग्रहों की समभूमि से ऊँचाई के बाबत जो विशेष वर्णन आता है वह इस प्रकार है ।
बुध समभूमि से ८८८ योजन यानी ३५५२००० माइल | शुक्र समभूमि से ८६१ योजन यानी ३५६४००० माइल | बृहस्पति समभूमि से ८६४ योजन यानी ३५७६००० माइल । मंगल समभूमि से ८६७ योजन यानी ३५८८००० माइल । शनि समभूमि से ६०० योजन यानी ३६००००० माइल | राहु को चंद्रमा के विमान से चार अंगुल नीचा यानी ८८० योजन (३५२०००० मील) से चार अङ्गुल नीचा बतलाया है । यह हुआ जैन शास्त्रों में ग्रहों के विषय का कुछ वर्णन । अब मैं इन ग्रहों के विषय में वर्त्तमान विज्ञान क्या कह रहा है कुछ वही लिखूगा । सूर्य के चौगिर्द घूमने वाले ग्रहों का अबतक जो पता लगा है उसमें से कुछ इस प्रकार है । सूर्य के सब से निकट घूमने वाला बुध है इसके पश्चात् एक के पश्चात दूसरे के क्रम से शुक्र हमारी पृथ्वी, मंगल, अनेक छोटे छोटे अवान्तर ग्रह, बृहस्पति, शनि युरेनस ( प्रजापति ), नेपच्यून (वरुण), प्लूटो ( कुबेर ) हैं । इन सब ग्रहों को अपनी अपनी कक्षा में सूर्य के चौगिर्द घूमने में कितने कितने दिन लगते हैं वह इस प्रकार है। बुध को ८८ दिन, शुक्र को २२५ दिन, पृथ्वी
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