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जैन शास्त्रों की असंगत बातें!
के विमान के पांच वर्ण हैं-कृष्ण, नील, रक्त, पीत, शुक्ल। यह राहु देव दो प्रकार के हैं-एक ध्रुष राहु (जिसको नित्य राहु भी कहते हैं) और एक पर्व राहु। ध्रुव राहु का यह काम है कि प्रत्येक मास की प्रतिपदा से चन्द्र-विमान को एक एक कला करके १५ दिन तक ढकते रहना और अमावश्या को पूर्ण ढकते हुए शुक्लपक्ष के प्रतिपदा से वैसे ही एक एक कला १५ दिन तक वापस हटना, जिसकी वजह से चन्द्रमा की कलायें दिखाई देती हैं। पर्व राहु का काम सूर्य चन्द्र के ग्रहण (Eclipse) करने का है। राहु का विमान सूर्य-विमान तथा चन्द्र-विमान से चार अङ्गुल नीचा चलता है। ग्रहण के समय पर्व राहु का विमान जब सूर्य विमान और चन्द्र विमान के सामने आजाता है तब सूर्य-विमान या चन्द्र-विमान राहु के विमान की आड़ में आजाते हैं और ढक जाते हैं। जितने अंशों में विमान ढका जाता है ; उतने ही अशों का ग्रहण हो जाता है। ग्रहणों के बाबत जैन शाखों में लिखा है कि यदि चन्द्र-ग्रहण के पश्चात् दूसरा चन्द्र-ग्रहण हो तो जघन्य (कम से कम ) ६ मास और उत्कृष्ट (ज्यादा से ज्यादा ) ४२ मास के अन्तर-काल से होगा और सूर्य-ग्रहण के पश्चात् सूर्यग्रहण हो तो जघन्य ६ मास और उत्कृष्ट ४८ वर्ष के अन्तर-काल से होगा। इस प्रकार चन्द्र और राहु के बाबत की तथा ग्रहणों की जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर-काल की कल्पना को देख कर ऐसी कल्पना करने वाले सर्वज्ञों की सर्वज्ञता पर तरस
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