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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
जैन शास्त्रों में प्रत्येक चंद्र और सूर्य को ज्योतिषी देवों का इन्द्र (राजा) बतलाया है और प्रत्येक चंद्र और सूर्य नामक इन्द्र के २८ नक्षत्र ८८ ग्रह और ६६६७५ क्रोडाकोड़ (४४६१५०६२५०००००००००००००० तारों का परिवार है। जम्बूद्वीप जिसको एक लाख योजन लम्बा-चौड़ा गोलाकार समतल भूभाग बतलाया है, उसमें दो चंद्र और दो सूर्य मय अपने अपने उपर्युक्त परिवार के भ्रमण कर रहे हैं। इन सब के विमानों का क्षेत्रमान जम्बूद्वीप के लक्ष योजन के क्षेत्रमान से बहुत अधिक होता है, अतः इसमें यह कैसे समा सकते हैं-इस के लिये एक जैन ग्रंथकार ने शंका उत्पन्न की और फिर वहीं पर चित्त को संतोष देने के लिए समाधान यह किया है कि 'तत्वं केवलीगम्यं' यानी सर्वज्ञ ही जाने।
जैन शास्त्रों में पांच प्रकार के संवत्सर बतलाये हैं। नक्षत्र संवत्सर, युग संवत्सर, प्रमाण संवत्सर, लक्षण संवत्सर और शनैश्चर संवत्सर। युग संवत्सर के ५ भेद किये हैं-१ चंद्र, २ चंद्र, ३ अभिवर्धन, ४ चंद्र, ५ अभिवर्धन। इनमें का पहिला चंद्र संवत्सर १२ मास का, दूसरा चंद्र संवत्सर १२ मास का, तीसरा अभिवर्धन संवत्सर १३ मास का, चौथा चंदु संवत्सर १२ मास का, पांचवा अभिवर्धन संवत्सर १३ मास का है। इस प्रकार एक युग के पांच संवत्सर ६२ महीनों के होते हैं। यहां पर अभिवर्धन अधिक मासके संवत्सरका नाम है । ऊपर बतलाये हुए हिसाब से पांच वर्ष (एक युग) में दो अधिक मास हुए इस
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