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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
चन्द्रावतंसक विमान की सुधर्मा सभा में क्या अपनी देवियों के साथ मैथुन सम्बन्धी भोग भोगने में समर्थ हैं, तो उत्तर में भगवान् कहते हैं कि 'हे गौतम, यह देव वहां मैथुन करने में समर्थ नहीं हैं कारण इन विमानों में बज्र - रत्न- मय गोल डब्बों में बहुत से जिनेश्वर देवों ( जो मुक्ति प्राप्त कर चुके हैं ) की अस्थि, दाढ़े वगैरह रखे हुए रहते हैं और वे अस्थि, दाढ़े वगैरह देवों के लिये पूजनीय, अर्चनीय और सेवा करने योग्य हैं। इसलिये वहां पर और और तरह के भोगोपभोग भोग सकते हैं परन्तु मैथुन नहीं कर सकते । चन्द्रदेव के मुकुट में चन्द्रमण्डल का चिन्ह है और उनका वर्ण तप्त सुवर्ण जैसा दिव्य है ! सूर्यदेव की तरह चन्द्रदेव के भी ४००० सामन्तिक देव (भृत्य ) हैं और १६००० देव आत्मरक्षक (Body guards ) सर्वदा सेवा में तत्पर रहते हैं। चंद्रदेव की वही सात अनिका हैं जैसी सूर्यदेव की हैं । चन्द्रदेव की सम्पत्ति का तो कहना ही क्या है, वे ज्योतिषी देवों में सब से अधिक धनाढ्य हैं । चन्द्रमा की कला कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष की तिथियों के अनुसार घटती बढ़ती रहती है । इसके लिये जैन शास्त्रों में एक राहु देव की कल्पना की है । चन्द्र प्रज्ञप्ति सूत्र के बीसव पाहुड़ में भगवान कहते हैं कि राहु एक देव है जो महा सम्पत्तिशाली, श्रेष्ठ वस्त्र और सुन्दर आभूषण धारण करने वाले हैं। इन राहु देव के नौ नाम इस प्रकार बताये हैं- सिंहाटक, जटिल, क्षुल्लक, खर, ददुर, मगर, मच्छ, कच्छ और कृष्ण सर्प । राहुदेव
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