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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
कि जैन शास्त्रों में- समभूमि बतला कर जिस सूर्य को उदय होते १८६०५३३७७ माईल से दिखाई देने वाला बतलाया है. उसका सौ दो सौ माइल पर भी उदय होते क्षण दिखाई नहीं देना - इस पृथ्वी पर दो के बजाय एक ही सूर्य का होना और लगातार महीनों तक दिखाई देना- पृथ्वी पर १८ मूहूर्त ( १४ घन्टे २४ मिनिट ) से बड़े दिन और रातों को होनाछः महीने के अन्तर - काल से पहिले ही सूर्य ग्रहण का होना आदि अनेकों बातें जैन शास्त्रों के विरुद्ध मगर प्रत्यक्ष में सत्य साबित होने वाली बातों के लिये विचार विज्ञान को कोसना अपने खुद को हास्यास्पद बनाना है । इन बातों के लिये विज्ञान को आड़ में लेने की आवश्यकता ही क्या है, यह तो प्रत्यक्ष के व्यवहारों में आने वाली बातें हैं जो सर्वज्ञता पर प्रकाश डाल रही हैं। ख़ैर, श्री चोपड़ाजी से अब भी अनुरोध है कि वे कृपा करके मेरे लेखों के प्रश्नों का समाधान करके कृतार्थ करें।
गतांक में मैंने खगोल के विषय में सूर्य पर कुछ लिखा था। अब इस लेख में चन्द्रमा के विषय में हमारे जैन शास्त्र क्या कह रहे हैं और वर्तमान विज्ञान क्या कह रहा है, संक्षेप में इसी पर कुछ लिखूंगा । जैन शास्त्रों में जम्बूद्वीप के लिये सूर्य की तरह चन्द्रमा भी दो बतलाये हैं और उन्हें सूर्य की ही तरह भ्रमण करते हुए बताया है । प्रत्येक चन्द्र हमारी पृथ्वी से ८८० योजन यानी ३५२०००० माइल ऊपर है यानी
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