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जैन शास्त्रों की असंगत वातें !
पर लिखा गया है। श्री चोपड़ाजी लिखते हैं कि कुछ दिनों से देखने में आता है कि एक श्रेणी के लोग आधुनिक विज्ञान की जानी हुई बातों से जैन सिद्धान्तों की बातों का असामंजस्य दिखला कर जैन सिद्धान्तों से लोगों की आस्था हटाने का प्रयास कर रहे हैं और जनता को भ्रम में डालते हैं। यह लोग यहां तक कह डालते हैं कि या तो सिद्धान्तों की बात सर्वज्ञों की नहीं हैं अथवा सर्वज्ञ थे ही नहीं।' यदि विवरणपत्रिका का उक्त लेख मेरे ही लेखों को लक्ष्य करके लिखा गया हो तब तो मैं कहूंगा कि श्री चोपड़ाजी का कर्त्तव्य तो यह था कि जैन शास्त्रों की उन बातों का जो प्रत्यक्ष के सामने असत्य साबित हो रही हैं ; किसी तरह सामंजस्य करके दिखलाते या उचित समाधान करते । मगर प्रश्नों की बातों का तो उन्होंने कहीं जिक्र तक नहीं किया, उल्टे प्रश्न करने वाले के प्रति लोगों में मिथ्या भ्रम फैलाने की ही चेष्टा की हैं। उनका यह कथन कि “यह लोग यहां तक कह डालते हैं कि या तो सिद्धान्तों की बातें सर्वज्ञों की नहीं हैं अथवा सर्वज्ञ कोई थे ही नहीं" लोगों में भ्रम फैला कर उत्तेजित करने के सिवाय और कुछ अर्थ ही नहीं रखता। 'विवरण-पत्रिका' के उस लेख में आगे चलकर श्री चोपड़ाजी ने एक पाश्चात्य विद्वान् Sir James Jeans के कुछ वाक्य उद्धृत कर विज्ञान की बातों को अनिश्चित बता कर विज्ञान पर से भी लोगों की आस्था हटाने का प्रयास किया है। श्री चोपड़ाजी को मालूम होना चाहिये
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