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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
पोती करने का प्रयास छोड़ दें। पिछले महीने के लेख में और इस में मैंने केवल वे ही भौगोलिक बातें पाठकों के समक्ष विचारार्थ रखने का प्रयास किया है जिनको ले कर जैन शास्त्रों की इस सम्बन्ध की बताई हुई बातों को हम गणना और युक्ति से गलत साबित होती हुई देख रहे हैं। अब मैं अगले लेखों में वे भौगोलिक बातें, जिन में जैन सूत्रों में पर्वत, समुद्र, द्रह, वन, नदी, नगर आदि का बढ़ा बढ़ा कर कल्पनातीत वर्णन किया है, बताने का प्रयास करूंगा । भौगोलिक विषयों के अलावा अन्य अनेक विषयों में भी ऐसे-ऐसे प्रसंग हैं जिन्हें हम असत्य या असम्भव और अस्वाभाविक की श्रेणी में रख सकते हैं। अगले लेखों में इन सब का भी दिग्दर्शन कराया जायगा ।
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