Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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[ जैन कथा संग्रह
वाणों की झड़ी लग रही थी, जिससे खूब आदमी मरते थे । किन्तु लड़ने में वीर योद्धा लोग उन सीढ़ियों पर चढ़ते ही जाते थे, जरा भी न हिचकिचाते थे ।
कोट के कंगूरों पर पहुँचते ही भालों की मार शुरू हुई । मनुष्य टप-टप नीचे गिरने लगे । किन्तु फिर भी और मनुष्य चढ़ते ही जाते थे, डरते नहीं थे ।
थोड़ी ही देर में शत्रु सेना कोट पर चढ़ आई । वहां तलवारों से युद्ध होने लगा । इस लड़ाई में कौशाम्बी के लश्कर की विजय हुई | कुछ सिपाहियों ने जाकर नगर के दरवाजे खोल दिये, जिससे सारी सेना नगर के भीतर घुस आई ।
राजा दधिवाहन अपने प्राण बचाकर भागे, उनका लश्कर भी जी लेकर भाग चला। वे जानते कि शतानिक के हाथ पड़ जाने पर हम लोगों को मरकर ही छुट्टी मिलेगी ।
शतानिक राजा ने अपनी सेना में घोषणा करवादी कि"नगर को लूटो और जो कुछ ले सको, वह ले लो ।”
पागल की तरह उद्विग्न - सिपाहियों ने लूट-पाट शुरू कर दी । सारे नगर में हाहाकार मच गया और चारों तरफ दौड़-धूप तथा चिल्लाहट होने लगी ।
रानी धारिणी भी राजपुत्री वसुमती को ले, राजमहल से निकल कर भाग चलीं ।
सारे नगर में शतानिक- राजा ने अपनी दोहाई फिरवादी । किन्तु धारिणी और वसुमती का क्या हुआ ?
वे दोनों नगर से बाहर निकल गईं। किन्तु इतने ही में शतानिक राजा के एक ऊँट सवार ने उन्हें देख लिया। उसने इन दोनों
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