Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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[ जैन कथा संग्रह चला गया । बादशाह ने अपने मन में यह निश्चय किया, कि मौका पाते ही भाट की इस तारीफ को झूठी साबित करनी चाहिये ।
( २ } गुजरात में भयंकर अकाल पड़ा । न तो पशुओं के लिए घास ही मिलती थी और न मनुष्यों के लिये अन्न-वस्त्र । पशुओं की मृत्यु होने लगी और मनुष्यों के झुण्ड के झुण्ड "अन्न-वस्त्र" चिल्लाते हुए इधर-उधर दौड़ते दिखाई देने लगे।
बादशाह को जब यह हाल मालूम हुआ तो उन्होंने तय किया, कि इस समय नगर--सेठ की परीक्षा लेनी चाहिये । अतः उन्होंने बंबभाट को बुलाया और उससे कहा, कि-"बंब, यदि चांपसी मेहता शाह-बादशाह के समान हो, तो एक वर्ष तक सारे गुजरात को अन्न वस्त्र, देकर जीवित रखें। यदि वे ऐसा न कर सकें, तो शाह कहने वाले तथा कहलाने वाले, दोनों को अपराधी समझा जावेगा।" . भाट ने कहा--"जो हुक्म।" .
उसने चांपसी मेहता के पास आकर उनसे यह बात कही, कि--बादशाह ने आज मुझसे यह शर्त ठहराई है, कि यदि चाँपसी मेहता गुजरात का एक वर्ष पालन कर सके तो वे सच्चे शाह हैं। नहीं तो शाह कहने और कहलाने वाले दोनों ही अपराधी माने जाकर दन्ड के भागी होंगे।
. चाँपसी मेहता ने कहा- "इसके लिये तुम फिर जाकर एक महीने की मुहलत मांग आओ। मास के अन्त में, महाजन-वर्ग या तो एक वर्ष तक गुजरात को जिलाने का जिम्मा ले लेगा अथवा 'शाह' पदवी छोड़ देगा ।"
. भाट ने वापस जाकर एक महिने की मुंहलत मांगी। बादशाह ने, इसे स्वीकार कर लिया।
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