Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur

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Page 169
________________ १६० ] [ जैन कथा संग्रह तुझ से स्वामी भक्त चतुर मन्त्रीवर आत्मत्यागी वीर ! भारत में क्या दुर्लभ है इस बसुधा में भी धार्मिक धीर ।। ३७ 'मेवाड़ गाथा' ले० पाण्डेय लोचनप्रसाद प्र. हरिदास एण्ड कम्पनी सन् १९१७ __ मनहर कहे भामाशाह जन्मभूमि में विपति परी, तिहि को बिलोकि प्रभु ! कैसे लुकि जाऊँ मैं। आज मम देश और स्वामि की करन सेवा, कृपा के निधान नृप ! कैसे रुकि जाऊँ मैं ।। स्वामि-काज सारन को देश कष्ट टारन को, औसर महान ऐसौ कैसे चूकि जाऊँ मैं, बित्त अनुसार आज सेवा ही बजाऊँ कहा ? ___ मालिक के हेतु नाथ ! ऊभो बिकि जाऊँ मैं ॥॥ दोहा-कहिय शाह संग्रह कियो, करि मन्त्री पन काम। यह धन है सब रावरो, मेरो केवल नाम ॥१२॥ कहत प्रताप मन बानी 6 हजार वार, - ऐसे दास को तो उपकार माननों परै ।। (प्रताप चरित्र ले. ठाकुर केसरीसिंह बारहठ ) र० सं० १९८१ वि० प्र० ओसवाल प्रेस कलकत्ता ' मन्त्री भामाशाह * देश सुरक्षा हित दिया, प्रमुदित द्रव्य अपार । धन्य २ मन्त्री प्रवर, भामा परम उदार ॥६७॥ भामा ने सब कोष को, दिया देश पर वार । सैनिक बन रण रत हुआ, वह कुबेर मेवार ॥६॥ मेवाड़-वीर-सतसई, ले.-जगदीशचन्द्र, शर्मा मलासा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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