Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur

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Page 156
________________ सच्चा शाह खेमा देदराणी ] [ १४७ ( ३ ) अब चपसी मेहता ने महाजनों को एकत्रित किया और उन्हें सब हाल कह सुनाया । महाजनों ने कहा कि - " इसके लिए चन्दा करना चाहिए ।" तत्क्षण चाँपानेर के सेठ साहूकारों की एक लिस्ट बनाई और लोग अपने-अपने नामों के सामने दिनों की संख्या लिखने लगे कि कौन कितने दिनों का खर्च देगें । जब सब लोग लिख चुके 2 तो, जोड़ लगाने पर मालूम हुआ अभी तो सिर्फ चार ही महीने के खर्च को व्यवस्था हुई है । शेष आठ महिनों के लिये क्या करें ? अन्त में दूसरे ग्रामों से सहायता लेने के लिए जाना निश्चय हुआ । पाटण उस समय बड़ा भारो शहर था । उसमें बड़े-बड़े सेठ साहूकार तथा श्रीमन्त लोग रहते थे चांपसो मेहता तथा कुछ अन्य प्रतिष्ठित लोग पाटण को चले । पाटण के महाजनों ने इनका बड़ा स्वागत सत्कार किया और सबने एकत्रित होकर चंदे की फेहरिस्त तैयार की। यहां दो महिनों के खर्च की व्यवस्था हो गई। फिर यह लोग धोका आये, जहां दस लिखे गये । इस तरह चंदे की लिस्ट बनाने में इन्हें बीस दिन तो लग गये, शेष केवल १० दिन और रहे। इन दस दिनों में ही, धोलका से चांपानेर पहुँचना था, अतः महाजन लोग धन्धुके जाने के लिये तेजी से चल पड़े | रास्ते में हडाला नामक एक गांव आया । हडाला में खेमा नामक एक श्रावक रहता था । इसे यह बात मालूम हुई, कि चाँपानेर के महाजन लोग मेरे गांव के पास से होकर जा रहे हैं । अतः वह दौड़ता हुआ गांव से बाहर आया और हाथ जोड़कर यह प्रार्थना करने लगा कि - " मेरी एक नम्र विनंती है स्वीकार कीजिये ।" चाँपसी मेहता तथा अन्य लोग, इस फटेहाल बनिये को देखकर मन में बड़े परेशान हुए और सोचने लगे, कि"हम जहां जाते हैं, वहीं मांगने वालों का तांता सा लग जाता है । इस भाई को और न मालूम क्या प्रार्थना करनी है ? यों सोचकर www Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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