Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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जैन कथा संग्रह ] अतः वे उस मचान पर चढ़ आये । धवल सेठ ने एक धक्का मारा जिससे श्रीपाल समुद्र में गिर पड़े।
समुद्र में काला-भँवर पानी, जिसमें मकान जितनी ऊँचीऊँची तरंगें उठती थीं। उसमें मगर का तथा अन्यान्य भयंकर प्राणी बाहर की तरफ मह निकालते थे। श्रीप ल जी ने श्रीनवपद जी का ध्यान किया और समुद्र में तैरने लगे।
जलतरणी विद्या के प्रभाव से वे तैरते-तैरते कोंकण देश के किनारे जा पहुंचे। यहां तक पहुँचने में वे थककर चूर हो गये थे, अतः पास हो के एक चंपे के झाड़ के नीचे जाकर सो गये।
कोंकण देश के राजा की एक कन्या जवान हो गई, जिसके लिये एक वर को बड़ो ढूढ़ खोज हो रही थी किन्तु कहीं भी अच्छा वर न मिल सका, अतः ज्योतिषी बुलवाकर उनसे ज्योतिष दिखावाया। ज्योतिषी भी पूरे ज्योतिषी थे, अतः उन्होंने कहा, कि"अमुक बार तथा अमुक तिथी को, अमुक समय समुद्र के किनारे पर जाना, वहाँ एक प्रतापी पुरुष मिलेगा, उसी को अपनी कन्या विवाह देना।"
आज ठीक वही तिथि और वही दिन था, अतः राजा के सिपाही समद्र के किनारे आ पहुँचे। वहां आकर देखते हैं कि चम्पे के झाड़ के नीचे एक महाप्रतापी पुरुष सो रहा है।
श्रीपाल कुमार जब जागे, तो उन्हें अपने आस-पास सिपाहियों का झुड दिखाई दिया। सिपाहियों ने श्रीपाल को प्रणाम करके कहा कि-"आप राजमहल को पधारिये, आपको राजा की तरफ से निमन्त्रण है।"
श्रीपाल राजमहल को गये । राजा उन्हें देखकर बड़े प्रसन्न
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