Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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[ जैन कथा संग्रह आपका पुत्र श्रीपाल जिसे आपने होशियार होने के लिये परदेश भेज दिया था, अब आ गया है । आप अब बूढ़े हो चुके हैं, अतः राज्य उसे सौंपकर धर्म-ध्यान कीजियेगा।"
अजीतसेन ने यह बात नहीं मानी, जिसके फलस्वरूप बड़ा भयंकर युद्ध हुआ। इस लड़ाई में अजीतसेन हार गये । श्रीपाल राजगद्दी पर बैठे । काका ने उस पर जो अत्याचार किये थे, उन्हें भूल कर श्रीपाल ने उनको एक सम्मान पूर्ण पद देना चाहा पर उन्हें अपनी हार एवं दुर्नीति से पश्चाताप होने लगा और अन्त में अजीतसेन को वैराग्य होगया, अतः उन्होंने दीक्षा लेकर पवित्र जीवन व्यतीत किया।
___ श्रीपाल ने अपने राज्य में रिआया (प्रजा) को बड़ा सुख पहुंचाया और श्रीनवपदी का बड़े ठाट-बाट से आराधन एवं उत्सव किया।
राजा श्रीपाल तथा मैना सुन्दरी आदि रानियाँ भी, उच्च जीवन व्यतीत करके अन्त में सद्गति को प्राप्त होगई ।
नवपद ये हैं-१-अरहंत २ - सिद्ध ३-आचार्य ४-उपाध्याय ५-साधु ६ --दर्शन ७-ज्ञान-८-चरित्र - और तपो इनको सिद्ध चक्र भी कहा जाता है । प्रत्येक आसोज एवं चैत्र सुदी सातम से पूनम तक में नवपदों की एक-एक दिन कुल ६ दिनों तक आराधना की जाती है। इस नवपद आराधना का अद्भुत चमत्कार है।
श्री नवपद-सिद्ध चक्र की जय। राजा श्रीपाल और मैंनासुन्दरी की जय।
आज भी श्रीनवपदजी का जाप होता है और सबके मुह से श्रीपाल महाराज का नाम बोला जाता है, कथा बाँची जाती है । धन्य हैं ऐसे धर्मी, पराक्रमी पुरुषों को और धन्य हैं सच्चे-भाव से श्रीनवपद जी की आराधना करने वालों को।
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