Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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पेथडकुमार ]
[ १३३ गरीब पेथड़कुमार का भाग्य थोड़े ही दिनों में पलट गया और अब उन्हें खूब धन मिलने लगा। अब वे दोनों बाप बेटे लोगों को बड़े चतुर मालूम होने लगे और सब लोग उनको बड़ी प्रशंसा करने लगे। वहाँ के राजा जयसिंह ने भी उनकी प्रशंसा सुनी तो अब उन्होंने इन दोनों बाप-बेटों को बुलवाया और इनको चतुराई की परीक्षा की। परीक्षा लेने पर राजा को भी यह विश्वास हो गया, कि ये दोनों बड़े चतुर हैं। उन्होंने पेथड़ को अपना प्रधान और झांझण को नगर का कोतवाल बनाया।
पुराने प्रधान को पेथड़कुमार से ईर्ष्या हुई कि यह थोड़े दिन पहले आया हुआ बनिया मांडवगढ़ का प्रधानमन्त्री कैसे होगया ? अतः उसने राजा के सामने यों चुगली की कि"महाराजा ! इस पेथडकुमार के पास चित्राबेली है और वह तो आपके बड़े काम की चोज है। यदि वह आपके पास रहे, तो आपका भण्डार कभी खाली ही न हो।" राजा ने, पेथडकुमार को बुलाकर इस विषय में पूछताछ की। पेथडकुमार ने सब बातें ठीकठीक बतला दी और फिर राजा से कहा, कि -"महाराज, आज से चित्रावेली आपकी भेंट है।" यह सुनकर राजा बड़े प्रसन्न हुए।
पेथडकुमार-मन्त्री ने प्रजा के बहुत से 'कर' कम करवा दिये और प्रजा को अधिक से अधिक सुखी बनाने का प्रयत्न किया।
. एक बार वे थोड़े दिनों की छुट्टी लेकर यात्रा को गये । जीरावला पार्श्वनाथ की यात्रा करके आबू पहुंचे । आबू के सुन्दर-वे मन्दिर देखकर उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई।
आबू-पहाड़ पर अनेक प्रकार की वनस्पतियें और जड़ीबूटियें होती हैं। कहा जाता है, कि पेथड़कुमार को यहां से एक ऐसी वनस्पति प्राप्त हुई, जिससे सोना बनाया जा सकता था।
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