Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 149
________________ १४० ] [ जैन कथा संग्रह पत्थर निकला । जयन्त सिंह कहते थे कि यह पत्थर हमारा है, और वह मुसलमान व्यापारी उसे अपना बतलाता था । यों कहते-सुनते आपस में विवाद छिड़ गया था । मुसलमान ने कहा - इस पत्थर के लिए मैं यहां के राजा को एक हजार दीनार दूँगा । जयन्त सिंह बोले- मैं दो हजार दीनार दूँगा । मुसलमान ने फिर कहा- में चार हजार दीनार देकर इस पत्थर को ले लूँगा । जयन्त सिंह ने कहा- मैं पूरे एक लाख दीनार इसके बदले में दे दूँगा । G मुसलमान मैं अपनी हठ पूरी करने के लिए इसके बदले में दो लाख दीनार दे डालू गा । · जयन्तसिंह ने कहा- मैं अपने स्वामी की प्रतिष्ठा की रक्षा के लिये इसके बदले में तीन लाख दीनार देने से भी नही चूकुँगा । यह सुनकर वह मुसलमान व्यौपारी ठंडा पड़ गया । जयंतसिंह ने तीन लाख दीनार देकर, वह पत्थर खरीद लिया, और उसे जहाज मैं डाल कर भद्रेश्वर में ले आया । किसी ने जाकर जगडूशाह से यह समाचार कहा, कि तुम्हारा मुनीम तो बड़ा कमाऊ है ! उसने तीन लाख दीनार देकर बदले में एक पत्थर खरीद लिया है । जगडूशाह ने उत्तर दिया, कि वह धन्यवाद का पात्र है, उसने तो मेरी इज्जत बढ़ाई है । इसके बाद जगडूशाह बड़ी धूमधाम से जयन्तसिंह तथा उस पत्थर को अपने घर ले आये। जयन्तसिंह ने सब कथा कह सुनाई और अन्त में कहा कि - " आपकी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिये ही मैंने इतना रुपया खर्च कर डाला है, अब आपको जो दण्ड देना उचित Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170