Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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पेथडकुमार ]
[ १३५ बुखार आया, जिससे शरीर में जलन होने लगी । अनेकों उपाय करने पर भी उसे किसी तरह से ठण्डक न पहुंची । शान्ति नहीं मिली इसी समय एक दासी ने पेथड़कुमार का वस्त्र लाकर, रानी को ओढ़ा दिया । वह वस्त्र ओढ़ते ही रानी को शान्ति प्राप्त हो गई । शान्ति मिलते ही उसे नींद आ गई।
यह देखकर एक चुगल खोर-दासी ने राजा से कहा, कि-"लीला वती, प्रधान से प्रेम करती है, देखिये उसका वस्त्र ओढ़ रखा है।"
राजा, यह सुनकर बड़े नाराज हुए और मन्त्री को पकड़ कर कैद कर दिया तथा रानी को जंगल में लेजाकर मार डालने का हुक्म दे दिया। राजा के एक दम ऐसा हुक्म देने पर, सबको बड़ा आश्चर्य हुआ।
जल्लाद लोग लीलावती को लेकर जंगल में गये, किन्तु उसे मारने की उनकी हिम्मत न पड़ी अतः यों ही छोड़ दी। रानी वेश बदलकर शहर में फिर लौट आई। पेथड़ को पुत्र झांझण कुमार ने चतुरता पूर्वक उसे अपने घर में छिपा लिया।
एक बार राजा के हाथी को शराब अधिक पिलादी गई, जिससे वह पागल हो गया। थोड़ी देर उपद्रव कर चुकने के बाद वह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा । राजा को अपने प्यारे-हाथी की यह दशा देखकर, बड़ा दुःख हुआ। अनेकों उपाय करने पर भी हाथी की दशा न सुधरी । इसीसमय उस दासी ने कहा-"महाराज! यदि पेथड़कुमार का वस्त्र मंगवाकर हाथी को ओढ़वा दिया जाय, तो वह अवश्य ही अच्छा हो जायगा।" राजा ने ऐसा ही किया और हाथो उठ खड़ा हुआ। इसके बाद दासी ने अपना पूर्व अनुभव कह सुनाया, कि किस तरह रानी को बड़े जोर का बुखार चढ़ आया था,
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