Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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जैन कथा संग्रह ]
राजा संप्रति दिग्विजय करके वापस लौटने वाले थे। समस्त पाटलीपुत्र उनके विजयी होकर लौटने के समाचार से हर्षोन्मत्त होगया । समस्त नगर, एक-एक गली, एक-एक मुहल्ला, हाट बाजार सभी ध्वजा-पताकाओं से सुसज्जित किये गये। कहीं शोक और दुःख का नाम न रहा। चारों दिशायें खुशी से फूल उठीं। महाराज के दर्शनों के लिए समस्त नगर आतुर हो उठा। सब बाल, वृद्ध, स्त्री, पुरुष सड़कों पर, घर और दुकानों की छतों पर जमा हो गये। राजमार्ग में कहीं तिल रखने का स्थान न रहा ।
___महाराज संप्रति हाथी पर सवार होकर शहर में पधारे। वायुमंडल गगनभेदी उद्घोषों से गूंज उठा, हर ओर से पुष्प-वर्षा होने लगी। नगर-जनों के मस्तक श्रद्धा और प्रेम से झुकने लगे।
महाराजा अशोक का अभी कुछ दिन पूर्व ही अवसान हो चुका था। राजा संप्रति सीधे अपनी माता के महल में चले गये। दिविजयी पुत्र का स्वागत करने के लिये किस माता का हृदय हर्ष से प्रफुल्लित न होगा ? महाराजा संप्रति की माता भी पुत्र के आगमन का समाचार सुनकर खुशी से झूम उठी। परन्तु दूसरे ही क्षण उसके मन में विचार आया, लाखों मनुष्यों का खून बहाकर संप्रति ने चारों दिशाओं में विजय तो पा ली परन्तु इससे उसकी आत्मा का क्या कल्याण हुआ ? इस विचार के आते ही उसका समस्त हर्षोल्लास काफूर होगया।
राजा संप्रति ने आकर माता के चरणों में सिर झुकाया । परन्तु उसकी माता ने न हूँ कहा, न हां, वह बिल्कुल शान्त रही। यह देखकर महाराज ने पूछा-माँ, आप उदास क्यों हैं ? आपका दिग्विजयी पुत्र आपको प्रणाम कर रहा है।
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