Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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बिमलशाह ]
I ११४
जिनेश्वरदेव के प्रति विमल की अपार भक्ति थी । वे अपनी अँगूठी में जिनेश्वर की छोटी सी तसवीर रखते थे, जिससे किसी को वन्दन करने पर पहला वन्दन उन्हीं का होता था ।
विमल की यह उन्नति देखकर उसके दुश्मन लोग राजा भीमदेव को उसके विरुद्ध उभारने लगे उन्होंने कहा - कि महाराज ! विमलशाह आपका राज्य लेना चाहते हैं । उन्होंने बड़ी भारी सेना तैयार की है, और वे जिनेश्वर देव के अतिरिक्त किसी को भी नहीं नमते हैं । इस तरह खूब उभारे जाने पर राजा भीमदेव को ऐसा जान पड़ा कि यह बात सच्ची है । अतः उन्होंने विमल शाह के घर को देखने की इच्छा से एक दिन कहा कि मन्त्री जी, मैंने आपका घर कभी नहीं देखा, अतः उसे देखने की बड़ी इच्छा है । विमल शाह के मन में तो कुछ कपट था ही नहीं इसलिये वे बोले कि - "स्वामी ! वह घर आपका ही है । आप पधारिये और भोजन भी वहीं चलकर कीजियेगा ।"
राजा अपने साथ थोड़े से घुड़सवार और पैदल सिपाही लेकर विमलशाह के घर गये। वहाँ पहुंचकर जब उन्होंने मन्दिर की बनावट देखी, तो चकित रह गये, और जब महल के दूसरे भाग की बनावट देखी तो अपने दांतों तले उंगली दबाली | जब विमल शाह का मजबूत किला देखा तो उनके हृदय की शंका, उन्हें सच्ची जान पड़ने लगी । वे मन में सोचने लगे कि अहो ! इस विमल के पास इतनी अधिक ऋद्धि-समृद्धि है ? मेरा बैभव तो उसके किस गिनती में है ?" यों सोचते हुए, राजा भोजन करके बापस चले आये ।
अब राजा अपने और मन्त्रिओं के साथ सलाह करने लगे, कि विमल को यहां से किस तरह अलग करना चाहिये ? विचार करते-करते एक मन्त्री ने यह तरकीब सुझाई कि- "महाराज !
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