Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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[ जैन कथा संग्रह
कितना निपुण है। यों सोचकर उन्होंने विमल से कहा, कि-"सेठ विद्या तो जो भी प्राप्त करलें. उसकी है । तुम्हें यदि वाण-विद्या आती हो तो चमत्कार दिखाओ।" विमल ने कहा, कि-"यदि आपको वाण विद्या देखनी ही हो, तो एक बालक को जमीन पर सुलादें, और उसके पेट पर नागर बेल के एक-सौ-आठ पान रखवादें । इन पानों में आप जितने भी कहेंगे, उतने ही पान, मैं वाण छेद दूमा और ऐसा करते हुए बालक को जरा भी चोट न पहँचेगी। आप जितना कहेंगे, उससे यदि एक भी पान कम ज्यादा हो जाय तो आपको तलवार है मेरा सिर । अथवा यदि आप कहें तो दही मथती हुई स्त्री के कान का हिलता हुआ, आभूषण छेद दूं। ऐसा करते समय यदि उस स्त्री के कान को जरा भी चोट पहुंचे, तो आपको जो भी दण्ड उचित प्रतीत हो, वह दे दीजियेगा।"
____ यों कहकर विमल ने अपनी बाण-विद्या बतलाई, जिसे देखकर राजा भीमदेव बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने विमल को पांचसौ घोड़े दिये और दंडनायक (सेनापति) की पदवी दी।
विमल बड़ा चतुर था। उसे यह अच्छी तरह मालूम था कि सेना को किस तरह अपने कब्जे में रखना चाहिये और अपनी प्रतिष्ठा तथा अपना प्रभाव किस तरह बढ़ाना चाहिये । उसका बड़ा रौब दबदबा था। गुजरात के सब छोटे-छोटे राजा लोग उससे भय खाते थे। थोड़े ही समय में विमल अपनी चतुराई से दण्डनायक से महामन्त्री हो गया।
अब वह बड़ी शान से रहने लगा। उसने अपने रहने के लिये राजा से भी अधिक अच्छा महल बनवाया, और एक सुन्दर गृह मन्दिर बनवाया । मकान और मन्दिर के चारों तरफ एक सुन्दर कोट तैयार करवाया। देश-विदेश से उत्तम-उत्तम हाथी, घोड़े मँगवाये और अपने लड़ने वाले योद्धाओं की वृद्धि की।
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