Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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[ जैन कथा संग्रह
पाटण के नगर-सेठ श्रीदत्त के श्रीदेवी नामक एक जवान कन्या थी । इस कन्या के लिये वे योग्य वर की तलाश कर रहे थे। उन्होंने अनेकों स्थान देखे, किन्तु कहीं भी वर पसन्द न पड़ा। इतने ही में उन्होंने विमल की प्रशंसा सुनी, अतः उसी के साथ अपनी कन्या की सगाई कर दी।
विमल के मामा अब विचारने लगे, कि-"इसके विवाह का खर्च कहां से आयेगा ?"
___ वीरमती सोचने लगी कि-' विमल का विवाह मेरे परिवार को शोभा दे, वैसा धूम-धाम से करना चाहिये। यह मन्त्री का पौत्र है।" किन्तु अपने भाई की स्थिति ध्यान में थी, अतः उन्होंने निश्चय किया, कि-"जब तक काफी धन न मिल जाय, तब तक विमल का विवाह न करूंगी " फिर विमल को बुलाकर उससे कहा, कि-बेटा ! जब मुझे धन मिलेगा, तभी मैं तेरा विवाह करूगी ।" विमल ने शान्तिपूर्वक यह सुन लिया।
दूसरे दिन ढोरों को लेकर विमल जंगल में गया। वहां एक झाड के नीचे बैठकर वह मिन्ता करने लगा, कि-"अब मुझे धन प्राप्त करना ही पड़ेगा। क्या करूं ? मुझे किस तरह धन प्राप्त हो सकता है ?" यों विचार करते-करते उसने अपने हाथ की लकड़ी कोज्योंही पास ही के दरार में घुसेड़ी, त्यों हो धम-धम ढेले गिर पड़े । विमल उन ढेलों को दूर करके देखता है, तो भीतर सोने का एक घड़ा दिखाई दिया। यह देखते ही उसके आनन्द की कोई सीमा न रही उसका भाग्य चमक उठा। वह घड़े को घर लाया और वीरमती के चरणों में उसे रख दिया। वीरमती यह देखकर बड़ी प्रसन्न हुई और थोड़े
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