Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur

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Page 119
________________ १५ मन्त्री श्री विमलशाह गुजरात के चावड़ा वंशीय प्रथम राजा वनराज हुए हैं, जिनके सेनापति नामक एक श्रावक थे। वे बड़े प्रतापी और बहादुर थे। उनकी नस-नस में क्षत्रिय का रक्त बहता था। उनके 'वीर' नामक एक पुत्र हुआ, वह भी बड़ा साहसी और शूरवीर तथा धर्म में बड़ा प्रेम रखने वाला था। इस लड़के का विवाह वीरमती नामक एक कन्या से हुआ। इसी वीरमती के उदर से एक लड़का पैदा हुआ, जिसका नाम रखा गया-विमल। विमल बत्तीस लक्षणों से युक्त बालक था। वह दूज के चन्द्रमा की तरह दिन-दिन बढ़ता ही जाता था। जब वह पांच वर्ष का होगया तो पिता ने उसे पाठशाला में पढ़ने को भेजा । वहां थोड़े ही दिनों, में खूब पढ़ लिखकर, वह अपने घर को वापस लौट आया। अब पिता ने समझ लिया कि पुत्र योग्य उमर का हो चुका है, अतः उन्होंने घर का सारा भार विमल पर डाल दिया, और स्वयं दीक्षा लेकर चल दिये । चलते समय उन्होंने विमल को शिक्षा दी, कि "बेटा ! ईमानदार व निडर रहना और जिन भगवान की आज्ञा अपने सिर चढ़ाकर धर्ममय जीवन बिताना।" विमल के जीवन पर इस उपदेश का बड़ा प्रभाव पड़ा। ज्यों-ज्यों समय बीतता गया, त्यों-त्यों विमल का सभी दिशाओं में अधिकाधिक विकास होता गया। उसके शत्रु यह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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