Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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[ जैन कथा संग्रह
व्यवस्था से उन्हें बहुत सा धन मिलने लगा। जिससे उन्होंने एक बड़ी सेना तैयार की। फिर राज्य का सारा कार्यभार कुछ दिनों के लिये तेजपाल को सौंपा, और आप सेना लेकर राजा के साथ भ्रमण को चले । जिन-जिन ग्रामों के जमीदारों ने राज्य का कर देना बन्द कर दिया था, उन उन ग्रामों में जाकर उनसे सब रुपया वसल किया। जिन जागीरदारों ने किस्तें देनी बन्द कर दी थीं, उनसे भी पिछली सब बकाया रकम वसूल कर ली। इस तरह सारे राज्य में घूम फिर कर उन्होंने राज्य का खजाना भर दिया और सब जगह शान्ति तथा व्यवस्था कायम कर दी।
अब वस्तुपाल ने मिले हुए धन से एक मजबूत सेना तैयार की और पड़ोस के राजाओं को जीतने की तैयारी की।
उस समय कठियावाड़ में बड़ा अन्धेर फैल रहा था। वहां के राजा लोग यात्रियों को लूट लेते थे। इसी कारण वस्तुपाल सबस पहले काठियावाड़ की तरफ को चले और वहाँ के अधिकाँश राजाओं को शीघ्र ही अपने वश में कर लिया। यों करते-करते ये वनथली नामक स्थान पर आये। वहां राणा वीरधवल के साले सांगण और चामुण्ड राज्य करते थे। इनके अभिमान की कोई सीमा ही न थी। वस्तुपाल ने उन्हें खूब समझाया, किन्तु वे अधीन न हुए, अतः युद्ध शुरू हो गया। इस लड़ाई में सांगण तथा चामुन्ड दोनों मारे गए और वस्तुपाल की विजय हुई। वस्तुपाल ने उनके लड़कों को राजगद्दी दे दी। इस तरह सारे काठियावाड़ में विजय का डंका बजाकर वस्तुपाल, राजा के साथ गिरनार मए । अत्यन्त भक्तिपूर्वक वहां की यात्रा करके वे वापिस लौट पड़े।
(४) भद्रेश्वर का राणा भीमसिंह, वीरधवल का कर देने वाला.
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