Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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महामन्त्री वस्तुपाल-तेजपाल ]
[ १२९ में दुष्काल का नहीं नाम भी न था।
ये स्वयं विद्वान और अनेकों विद्वानों के आश्रय दाता थे।
राजा बीर धवल की मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के बाद इन दोनों भाइयों ने उनके पुत्र बीसलदेव को राजगद्दी पर बैठाया और स्वयं पहले की तरह राज्य करने लगे।
कुछ दिनों बाद बस्तुपाल को यह जान पड़ा कि अब अन्तकाल समीप आ गया है, अतः उन्होंने सबके साथ मिलकर शत्रौंजय के लिए एक संघ निकाला। राजा वीसलदेव और राजपुरोहित सोमेश्वर ने अपने नेत्रों से आंसू निकालते हुए उन्हें विदा किया।
रास्ते में वस्तुपाल को बीमारी ने घेर लिया और उनकी मृत्यु हो गई। उनके शव का अन्तिम संस्कार शत्रुजय पर किया गया और वहाँ एक जैन मन्दिर का निर्माण हुआ। उनकी मृत्यु के बाद ललितादेवी ने भी उपवास करके अपना शरीर छोड़ दिया। इसके पाँच वर्ष पश्चात्, तेजपाल का देहान्त हुआ, और अनुपतादेवी ने पति के वियोग होते ही, अनशन प्रारम्भ करके अपनी सांसारिक लीला समाप्त कर दी।
मन्त्रीस्वर, वस्तुपाल तेजपाल जैसे वीर, विद्वान नीति, निपुण, धर्म-निष्ठ और कला प्रेमी विरले ही व्यक्ति हुए हैं जैसे भारत भूमि गौरवान्वित हैं।
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