Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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महामन्त्री वस्तुपाल-तेजपाल ]
[ १२५ अधीन राजा था । किन्तु उस समय उसने कर देने से नांही करदी थी। उसकी सेना में तीन बड़े बहादुर लड़ने वाले योद्धा थे। अतः उसे गर्व था कि मेरा कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। वस्तुपाल तथा राणा वीरधवल ने उस पर चढ़ाई कर दी । इस लड़ाई में वीरधवल हार गए, किन्तु उसी समय वस्तुपाल फौज लेकर वहां जा पहुंचे। वे बड़ो चतुराई से लड़े और अन्त में विजय प्राप्त कर ही ली।
वस्तुपाल यह जबरदस्त विजय प्राप्त करके पीछे लौटे। इसी मौके पर उन्होंने सुना कि गोधरा का शासक घूघुल मदान्ध हो रहा है और अपनी प्रजा को नाना प्रकार से कष्ट दे रहा है। यह सुनकर वस्तुपाल ने उसे कहला भेजा, कि-"तुम शीघ्र ही राजा वीरधवल के अधीन हो जाओ।" उसने वस्तुपाल के संदेश पर तो ध्यान दिया ही नहीं, उल्टे एक दूत के साथ थोड़ा सा काजल, एक चोली, और एक साड़ी वीरधवल को भेंट स्वरूप भेजी। इस अपमान से राजा वीरधवल बहुत चिड़े । उनके नेत्रों से आग बरसने लगो। राजा ने लाल-लाल नेत्रों से अपने सभासदों की तरफ एक आशा पूर्ण दृष्टि से देखा, किन्तु कोई भी घूघुल को जीतकर पकड़ लाने के लिए तैयार न हुआ । क्योंकि लोगों के हृदयों पर घूघुल का बड़ा आतंक जमा हुआ था। अन्त में तेजपाल उठकर खड़े हए. और यह प्रतिज्ञा की, कि मैं शीघ्र ही घूघुल को जीतकर उसे यहां पकड़ लाऊँगा। राजा वीरधवल यह देखकर बड़े प्रसन्न हए।
___ तेजपाल एक बड़ी सेना लेकर गोधरे की तरफ चले। वहां पहुंचने पर एक भीषण युद्ध हुआ । इस युद्ध में घूघुल पकड़ा गया, और उसे एक पिंजरे में बन्द करके घोलका लाया गया। यहाँ उसी की
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