Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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विमलशाह ]
[ ११७ - सारे शहर में बिमलशाह की जय बोली जाने लगी। राजा भीमदेव तथा उसके मन्त्री लोग बड़े निराश हुये। उन्होंने तो विमलशाह की जान लेनी चाही थो, किन्तु उल्टी उसकी कीर्ति में वृद्धि हो गयी। अब क्या करें ? अन्त में उन्होंने एक दूसरा उपाय सोच निकाला, कि राजकीय मल्ल से विमलशाह को कुस्ती लड़वाया जाय, और वहां उसका काम तमाम करवा दिया जाय । राजा ने मल्ल को बुलवाकर सब अच्छी तरह से समझा दिया। थोड़े दिन बीतने पर, एक दिन राजा ने विमलशाह से कहा कि-''मन्त्रीजी, यह राजकीय मल्ल अपने बल का बड़ा अभिमान करता है, अतः इसकी एक दिन परीक्षा तो करो।"
मल्ल के साथ विमलशाह की कुश्ती हुई। कुश्ती के अनेक दांव खेले गए, जिसमें विमलशाह ने मल्ल को बड़ी तेजी से पटक कर विजय प्राप्त की । सब दर्शकों के मुह से वाह-वाह की ध्वनि निकल पड़ी।
राजा और उसके मन्त्री-लोग अब अधिक चिन्ता करने लगे, कि विमल में दैवी शक्ति है, जिससे वह किसी का मारा नहीं मर सकता । अब कोई ऐसा उपाय सोचना चाहिये, जिससे वह यहाँ से चला जाय । इसके बाद उन्होंने निश्चय किया कि-'उसके दादा के समय का ५६ करोड रुपया लेना (पावना ) निकाल कर उससे मांगा जाय । यदि वह अपना कर्ज अदा करना स्वीकार करेगा तो भिखारी हो जायगा, और यदि न देना चाहेगा, तो राज्य छोड़कर चला जावेगा।"
दूसरे दिन विमलशाह जब दरबार में गए तो इन्हें देखकर राजा भीमदेव इनकी तरफ पीठ करके बैठ गए। विमलशाह ने मन्त्रियों से इसका कारण पूछा,तो उन्होंने बतलाया कि - राजा को हिसाब के बारे में गुस्सा आ रहा है। आप या तो आपके खाते में
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