Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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विमलशाह ]
। ११३ दिनों में ही उसने विमल के विवाह की तिथि निश्चित करवाई। उसके बाद परिवार को शोभा देने योग्य खूब धूमधाम से विमल का विवाह हुआ। पत्नी श्रीदेवी घर आई। विमल और श्रीदेवी, दोनों की समान जोड़ी थी । कोई भी एक दूसरे से कम न था। - विमल अब ऐसा नहीं रह गया था, कि उसे शत्रु से डरना पड़े। अतः वह मामा का घर छोड़ककर पाटण आये। वहां आकर उसने अपना भाग्य अजमाना शुरू किया।
एक दिन वह बाजार में होकर जा रहा था। वहां राजा के सिपाही लोग निशाने बाजी कर रहे थे। अच्छे-अच्छे योद्धाओं ने निशान ताका, किन्तु कोई भी ठीक न मार सका। यह देखकर विमल हंसने लगा और जोर से बोला कि- “वाह ! सैनिक लोग हैं तो बड़े बहादुर, महाराजा भीमदेव का जाता हुआ राज्य बचा लेने के काबिल हैं।" यह सुनकर सैनिक लोग बहुत चिड़े । इसी समय महाराजा भीमदेव भी वहीं आ पहुँचे । उन्होंने भी निशाना मारा, किन्तु वे भी चूक गये। अत: विमल ने हंसकर कहा"मालूम होता है, यहाँ सब नौसिखिये ही नौसिखिये इकट्ठे हो रहे हैं। इन लोगों के हाथ में राज्य की बागडोर है, किन्तु ये क्या शासन कर सकते हैं ?" . ज्योंहो भीमदेव के कान में ये शब्द पड़े, त्योंही वे चौंक उठे। उन्होंने विमल से पूछा कि- "सेठ ! क्या तुम भी वाण विद्या जानते हो ? यदि जानते हो तो इस तरफ आओ।" विमल ने उत्तर दिया कि-"वाण विद्या तो आपके समान क्षत्रिय लोग ही जानें, हम तो व्यापारी कहे जाते हैं । हमको भला क्यों आने लगी ? - यह व्यंग सुनकर भीमदेव जान गये, कि यह मनुष्य अवश्य कोई बड़ा धनुर्धर है, इसकी वाण विद्या देखनी चाहिये, कि वह उसमें
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