Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
View full book text
________________
६४ ]
[ जैन कथा संग्रह
भला कोई कभी अधाता है ? महाराज ने कहा-कुछ और सुनायें तो अच्छा हो । सूरदास ने दूसरा गीत सुनाया, जिसका भावार्थ यह था
चन्द्रगुप्त के प्रियपुत्र बिन्दुसार के परमप्रतापी पुत्र अशोक देवों को भी प्रिय हैं, धर्म के तो वे प्राण हैं । उनका प्रिय पुत्र कुणाल आज अन्धा होकर काकिणी मांगता है।
यह गीत सुनते ही महाराज अशोक के मुख पर ग्लानी छा गई । उन्हें अपने प्यारे पुत्र कुणाल की याद आई एवं अपनी भूल, कि जिसके कारण कुणाल को अपनी आंखों से हाथ धोने पड़े थे। उन्होंने एकबार कुणाल को पत्र लिखा था जिसमें "अधीयतां कुमार" लिखा था पर सौत रानी ने उनके स्थान पर 'अन्धीयतां कुमार' कर दिया था। कुणाल ने पत्र पढ़कर पिता की, रानी द्वारा बदली हुई गलत आज्ञा का भी तुरन्त पालन किया । लोगों के हजार समझाने पर भी पितृभक्त कुणाल ने अपनी आंखें फोड लीं। यह सब घटना राजा के आँखों के सामने आगई। उन्हें ख्याल हुआ कि कहीं मेरा अंध पुत्र कुणाल यही तो नहीं हैं ? उन्होंने पूछा-सूरदास जी, आप कौन हैं ? सूरदास ने उत्तर दिया-महाराज, आपका आज्ञा-पालक पुत्र कुणाल है । राजा अशोक एक दम चौंक पड़े । अरे ! कुणाल, मेरा प्रिय पूत्र कुणाल ! अब उनसे न रहा गया, और सिंहासन से उठकर पर्दे के पीछे बैठे हए पूत्र को गले लगा लिया। जब आवेग कुछ कम हआ तो उन्होंने पूछा-बेटा ! तुमने गीत में 'काकिणी" माँगने की बात कही थी, वह काकिणो किसे कहते हैं ? तुम क्या माँगते हो? कुणाल ने उत्तर दिया-पिताजी, मैं राज्य माँग रहा हूँ राजा ने कहा-बेटा, कुणाल, तुम्हारी आँखें नहीं हैं, फिर राज्य कैसे करोगे ? उसने उत्तर दिया-पिताजी, मेरा पूत्र इस राज्य का उपभोग करेगा। राजा ने फिर आश्चर्य से पूछा-अच्छा, क्या तुम्हारे पुत्र भी है । कब जन्मा ? कुणाल ने उत्तर दिया 'संप्रति" ( अभी हाल
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org