Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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म० कुमारपाल ]
[ १०३ दढ़ रहे हैं। तब उन्होंने परदेश जाने का विचार किया। इतने ही में सिद्धराज ने उसके पिता का बध करवा डाला ।
- इस हत्या का समाचार पाते ही कुमारपाल समझ गये, किं अब मेरी बारी है। अतः वे अपने परिवार को वहीं छोड़कर, रातों रात भाग चले।
कुमारपाल बाबाजी (सन्यासी) का वेश करके एक स्थान से दूसरे स्थानमें भ्रमण करने लगे। किसी दिन खाने को मिल जाता और किसी दिन भूखे ही रहना पड़ता यों करते-करते इसी वेश में एक बार वे पाटण आये और वहाँ एक महादेव के मन्दिर में पुजारी नियुक्त हो गये।
राजा को जब इस बात की कुछ खबर लगी, तो उसने अपने पिता के श्राद्ध का बहाना करके, सब पुजारियों को भोजन करने बुलाया। उधर कुमारपाल को भो यह बात मालम हो गई कि मुझे मार डालने के लिये हो यह जाल रचा गया है । अनः उल्टो (कै) का बहाना बनाकर वे भोजनशाला से बाहर आगये। वहाँ से वे केवल पहनी हुई धोती लिये हुए जितना भागा गया तेजी से भागने लगे। सिर नंगा, पैर भी नंगे, शरीर खुला हुआ और ऊपर से दोपहर की गर्मी । कि तु वे कर ही क्या सकते थे ? यदि भागने में जरा भी देर हो जाय तो सिद्धराज के सिपाही वहां आ पहुँचे और उन्हें अकाल मृत्यु से मरना पड़े।
सिद्धराज को जब यह बात मालम हई कि कमारपाल हाथ से निकल गये हैं, तो उन्हें पकड़ लाने के लिये कुछ घुड़सवार भेजे ।
कुमारपाल जब भागते-भागते दो एक कोस दूर निकल गये, तो पीछे से घोड़ों की टापों को आवाज सुनाई दी। उन्होंने विचारा कि-"अब दौड़ने से काम नहीं चलेगा, कहीं थोड़ी देर के लिये छिपे
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