Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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राजा श्रीपाल ]
हुए, और अपनी कन्या का विवाह उनसे कर दिया। फिर राजा ने उन्हें एक ओहदा दिया कि सभा में जरे कोई नया पुरुष आवे, उसे पान का बीड़ा दें।
श्रीपाल के समुद्र में गिरते ही धवल सेठ ने अपना पाप मय नीच प्रयत्न करना शुरू कर दिया। उसने उन दोनों सतियों का सत्त लूटने की बड़ी कोशिशें कीं, किन्तु सफल न हो सका।
- श्रीपाल की दोनों स्त्रियां जिनेश्वर देव का स्मरण करती हुई अपना समय व्यतीत करती रहती थीं।
यों करते-करते धवल सेठ के जहाज, कौंकणं देश के किनारे पर पहुंचे । वह एक बड़ी भेंट लेकर राजा के यहां गया। वहाँ दरबार में जाकर बैठते ही, श्रीपाल ने उसे पान का बीड़ा दिया।
यह देखकर धवल सेठ बड़े आश्चर्य में पड़ गया। वह विचारने लगा, कि-"यह मेरा दोस्त ! यहां कैसे आ गया? मैंने तो इसे समद्र में फेंक दिया था, फिर भी जीवित कैसे निकल आया? अच्छा अब मुझे इसके लिये कोई दूसरी ही तरकीब करनी पड़ेगी।"
___ "श्रीपाल तो हल्के डूम कुल का मनुष्य है।" यह प्रमाणित करने के लिए उसने बड़े-बड़े प्रपंच रचे, किन्तु अन्त में पाप का बड़ा, फूट ही गया और राजा को यह बात किसी तरह मालूम हो : ई कि धवल सेठ महा पापी है। अतः राजा ने धवल सेठ को प्राण इण्ड देने का विचार किया। किन्तु श्रीपाल के चित्त में यह बात पाई कि-"चाहे जो हो, किन्तु धवल सेठ आखिर तो मेरे आश्रय- . आता ही हैं, अतः उन्हें ऐसा दंड नहीं मिलना चाहिये।" उन्होंने विल सेठ को छुड़वाया और अपना महमान बनाया।
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