Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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जम्बूस्वामी ]
[ ६३ जम्बूकुमार ने कहा-"अरे भाई, घबराओ मत, तुम्हें मैं गदान देता हूँ, मेरे पास विद्या कुछ भी नहीं हैं केवल एक धर्म भधा है, वह मैं तुम्हें देता हूँ, यों कह कर उन्होंने उन्हें धर्म का उपदेश दिया। उसे ऐसी बातें सुनने का अपने जीवन में यह पहला की मौका मिला था।
प्रभव ने धन की गठरियां उतरवा-डालीं । नींद की विद्या वापिस लींचली । और हाथ जोड़कर बोला कि जम्बूकुमार आपको धन्य है! कि धन के ढेर और अप्सराओं के समान सुन्दर स्त्रियाँ छोड़कर अक्षा ले रहे हैं। मैं तो महापापी हूँ। और धन प्राप्त करने के लिए नीच से नीच रोजगार करता हूँ। किन्तु आज मुझे अपनी बुरी बातों का विचार हो आया है । सवेरे मैं भी सब चोरों सहित आपके साथ दीक्षा लगा।
इस समय सब स्त्रियां जाग उठी थीं। वे जम्बकुमार को दीक्षा न लेने के लिए समझाने लगीं।
एक स्त्री ने कहा-"स्वामीनाथ, आप दीक्षा लेने को तैयार हो हुए हैं, किन्तु पीछे से "बक" नामक किसान की तरह पछताओगे।"
प्रभव ने पूछा-"बक किसान की क्या कथा है ? वह जरा मुझे बतलाइए तो सही।"
वह स्त्री कहने लगी, कि-"मारवाड़ में एक किसान ने अनाज की खेती की, जिसमें अनाज खूब पैदा हुआ। फिर एकबार वह अपनी लड़की के यहां गया । वहाँ उसे माल पुए खाने को मिले। माल पुए उसे बड़े स्वादिष्ट मालूम हुए । अतः उसने पूछा कि यह चीज किस तरह बनती है ? उत्तर मिला, कि गेहूँ का आटा और गुड़ हो तो यह चीज बन सकती है।
उसने घर आकर खेत में पैदा हुआ सब अनाज उखाड़ डाला। और गेहूँ तथा गन्ना बो दिया, किन्तु पानी के बिना सब सूख
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