Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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जम्बूस्वामी ]
[ ६५ प्रभव ने कहा कि-"फिर वह गधे की पूंछ पकड़ने वाले की क्या कथा है ?" . वह स्त्री बोली कि--"एक गांव में ब्राह्मण का एक लडका था। वह बड़ा ही मूर्ख था। उससे उसकी माँ ने एकबार कहा, कि ग्रहण की हुई बात को फिर नहीं छोड़ना । यह पंडित का लक्षण है। उस मूर्ख ने अपनी माता का यह कथन अपने मन में धारण कर लिया। एक दिन किसो कुभार का गधा घर से भागा। कुंभार भी उसके पीछे पीछे दौड़ा। आगे चलकर कुमार ने उस ब्राह्मण के लड़के को आवाज दी, कि अरे भाई! जरा उस गधा को पकड़ना । उस मूर्ख ने गधे की पूछ पकड़ ली। गधा अपने पिछले परों से जोर जोर से लात मारने लगा। किन्तु फिर भी उस लडके ने दम न छोड़ी । यह देखकर लोग कहने लगे, कि अरे मूख गधे की पूछ क्यों पकड़ रखी हैं ? उसे छोड़ता क्यों नहीं ? यह सुनकर लड़के ने उत्तर दिया, मेरी मां ने मुझे ऐसी ही शिक्षा दी है कि पकड़ी हुई चीज को फिर नहीं छोड़नी चाहिए । इसलिए उस मूर्ख ने खूब दुख उठाया।
जम्बूकुमार यह सुनकर बोले - कि ठीक है। तुम सब उस गधे की तरह हो। तुम्हें पकड़ रखना, यह गधे की पूछ पकड रखने के समान ही भूल है । किन्तु, तुम कुलवती होकर ऐसी बातें करती हो यह ठीक नहीं है।
इस तरह स्त्रियों के साथ जम्बूकुमार का बडा वाद-विवाद हुआ, जिसमें जम्बूकुमार की ही विजय हुई। अन्त में सब स्त्रियां भो उनके साथ ही दीक्षा लेने को तैयार हो गई।
सवेरा होते हो, जम्बू कुमार ने अपने माता-पिता से दीक्षा लेने की आज्ञा माँगी। मां-बाप ने वचन दे रखा था, अतः उन्होंने बिना और कुछ कहे आज्ञा दे दी और स्वयं भी दीक्षा लेने को तैयार हो गये।
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