Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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राजा श्रीपाल ]
[८३ कि-"लड़की ! अब अपने आप-कर्मीपत बतलाना ।" मैना ने उत्तर दिया।" बड़ी खुशी से पिताजी ! जो मुझ में कुछ --अपनापन होगा, मेरा पुण्य कर्म होगा तो दुख टलकर निश्चय ही मैं सुखी हो जाऊँगी। नहीं तो आपका दिया हुआ कितने क्षण रहेगा?" ।
मैना और उम्बर-राणा दोनों चले । मैना ने कहा - "स्वामीनाथ ! गांव में गुरुराज पधारें हैं, वे निराधारों के आधार और दुखी जनों के रक्षक हैं।" यह सुनकर उम्बर राणा मैंना के साथ उनके दर्शन करने गये। भक्ति-भाव से दर्शन कर चुकने के बाद, मैना ने पूछा, कि- "हे गुरू महाराज ! कृपा करके कोई ऐसा उपाय बतलाइये जिससे मेरे स्वामी का रोग दूर हो और उनका शरीर अच्छा हो जाय।"
गुरू महाराज ने कहा-कि-"नव आम्बिल करो और नवपदजी की आराधना करो। यदि सच्चे भाव से यह आराधना करोगे, तो नख में भी रोग न रहेगा।"
दोनों ने अम्बिल-ब्रत करना शुरू किया। ज्योंही एक, दो और तीन अम्बिल ब्रत पूरे हुए, त्यों ही शरीर में फिर से अच्छापन आने लगा । और पूरे नौ अम्बिल होते ही तो सारा रोग दूर हो गया । प्रभुप्रजा के स्नात्र जलके लगाने से श्रीपाल का शरीर सोने की तरह स्वच्छ हो गया। उन सात सौ कोढ़ियों ने भी ऐसा ही किया और उनके रोग भी दूर हो गये।
__ अब मैनासुन्दरी के हर्ष की कोई सीमा न रही । जब कमलप्रभा को यह बात मालूम हुई, तो वह रास्ते से वापस लौट आई और उज्जैन में आकर उन सबसे मिली।
गांव ही में मैंनासुन्दरो का मामा रहता था। उसे जब यह मालूम हुई, तो वह गाजे-बाजे से इन तीनों को अपने घर लिवा लाया
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